मेरी जमीन तुमसे गहरी रही है,
वक़्त आने दो, आसमान भी तुमसे ऊंचा रहेगा।
लूट रहे थे खजाने मां बाप की छाव मे,
हम कुड़ियों के खातिर, घर छोड़ के आ गए।
कामयाबी तेरे लिए हमने खुद को कुछ यूं तैयार कर लिया,
मैंने हर जज़्बात बाजार में रख कर एश्तेहार कर लिया ।
यूं तो भूले हैं हमें लोग कई, पहले भी बहुत से
पर तुम जितना कोई उन्मे सें , कभी याद नहीं आया।
zakir khan best shayari
इंतकाम सारे पूरे किए, पर इश्क अधूरा रहने दिया।
बता देना सबको की, में मतलबी बड़ा था।
हर बड़े मुकाम पे तन्हा ही मैं खड़ा था।
Intkam sare pure kiye,
par ishq adhura rehne diya.
Bata dena sabko ki,
me matlabi bada tha.
Har bade mukaam pe
tanha hi me khada tha.
मेरे घर से दफ्तर के रास्ते में
तुम्हारी नाम की एक दुकान पढ़ती हैं
विडंबना देखो,
वहां दवाइयां मिला करती है।
Har ek copy ek peeche kucch na kuch khaas likha hai,
Bas iss tarah tere mere Ishq ka Itihass likha hai.
Tu Duniya me chaahe jahan bhi rahe,
Apni Diary mein maine tujhe paas likha hai..
इश्क़ को मासूम रहने दो नोटबुक के आख़री पन्ने पर
आप उसे किताबों म डाल कर मुस्किल ना कीजिए।
Ab koi haq se hath pakadkar mehfil mein dobara nahi baithaata.
Sitaaron ke beech se suraj banne ke kuch apne hi nuksaan hua karte hai.
मेरी औकात मेरे सपनों से इतनी बार हारी हैं के
अब उसने बीच में बोलना ही बंद कर दिया है।
zakir khan shayari on love
ज़मीन पर आ गिरे जब आसमां से ख़्वाब मेरे
ज़मीन ने पूछा क्या बनने की कोशिश कर रहे थे।
Zindagi se kuch zyaada nahi, bas itni si farmaaish hai.
Ab tasveer se nahi tafseel se milne ki khwaaish hai.
zakir khan shayari
हर एक दस्तूर से बेवफाई मैंने शिद्दत से हैं निभाई
रास्ते भी खुद हैं ढूंढे और मंजिल भी खुद बनाई।
मेरी अपनी और उसकी आरज़ू में फर्क ये था
मुझे बस वो…
और उसे सारा जमाना चाहिए था।
Hum dono me bas itna sa farq hai uske sabd “lekin” mere naam se shuru hote hain, aur mere saare “kaash” uss par aa kar rukte hain.
मेरे इश्क़ से मिली है तेरे हुस्न को ये शोहरत,
तेरा ज़िक्र ही कहां था , मेरी दास्तान से पहले।
अगर यकीन ना हों तो बिछड़ कर देख लो
तुम मिलोगे सबसे मगर हमारी ही तलाश में।
zakir khan famous shayari
इश्क़ किया था
हक से किया था
सिंगल भी रहेंगे तो हक से ।
जिंदगी से कुछ ज्यादा नहीं,
बस इतनी सी फर्माइश है,
अब तस्वीर से नहीं,
तफसील से मिलने की ख्वाइश है ।
ये तो परिंदों की मासूमियत है,
वरना दूसरों के घर अब आता जाता कौन हैं।
तुम भी कमाल करते हों ,
उम्मीदें इंसान से लगा कर
शिकवे भगवान से करते हो।
बड़ी कश्मकश में है ये जिंदगी की,
तेरा मिलना मिलना इश्क़ था या फरेब।
दिलों की बात करता है ज़माना,
पर आज भी मोहब्बत
चेहरे से ही शुरू होती हैं।
बे वजह बेवफाओं को याद किया है,
ग़लत लोगों पे बहुत वक़्त बर्बाद किया है।
माना कि तुम को भी इश्क़ का तजुर्बा काम नहीं,
हमनें भी तो बगों में हैं कई तितलियां उड़ाई।