गुलज़ार के नाम से कौन नावाक़िफ़ होगा। लोगों ने उनकी बनाई फ़िल्में देखीं, उनके संवाद सुने और उनके लिखे गीतों को भी भरपूर प्यार दिया। इसके इतर गुलज़ार साहब ने नज़्में और ग़ज़लें भी लिखी हैं। आइए पढ़ते हैं उनकी लिखी ग़ज़लों से ख़ास शेर Ghalib Shayari in hindi
मुहब्बत में उनकी अना का पास रखते हैं,
हम जानकर अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हैं
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल के खुश रखने को ग़ालिब यह ख्याल अच्छा है
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ
ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते
कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर।
है एक तीर जिस में दोनों छिदे पड़े हैं
वो दिन गए कि अपना दिल से जिगर जुदा था
ऐ बुरे वक़्त ज़रा अदब से पेश आ
क्यूंकि वक़्त नहीं लगता वक़्त बदलने में
हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब
न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया।
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी
मरते हैं आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नहीं आती
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी
कुछ हमारी खबर नहीं आती
जी ढूंढता है फिर वही फुर्सत की रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-इ-जानन किये हुए
जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिब
ज़ख्म का एहसास तब हुआ
जब कमान देखी अपनों के हाथ में
हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ
जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा
क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में
हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ
वर्ना क्या बात करनी नहीं आती
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
Best Galib Shayari in Hindi
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’।
शर्म तुम को मगर नहीं आती
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है।
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ।
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन
मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता
दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए
हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते
नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है
Ghalib ki Mohabbat Wali Shayari
पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चार
ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
हम जो सबका दिल रखते है
सुनो, हम भी एक दिल रखते है
हम भी दुश्मन तो नहीं है अपने
ग़ैर को तुझसे मोहब्बत ही सही
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब‘
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे
वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत है
कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते है
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
खूबसूरत गज़ल जैसा है तेरा चाँद सा चेहरा
निगाहे शेर पढ़ती हैं तो लब इरशाद करते है
बेचैन इस क़दर था कि सोया न रात भर
पलकों से लिख रहा था तेरा नाम चाँद पर
बेसबब मुस्कुरा रहा है चाँद
कोई साजिश छुपा रहा है चाँद
ना जाने किस रैन बसेरो की तलाश है इस चाँद को
रात भर बिना कम्बल भटकता रहता है इन सर्द रातो मे
चाँद मत मांग मेरे चाँद जमीं पर रहकर
खुद को पहचान मेरी जान खुदी में रहकर
इन आबलों से पाँव के घबरा गया था मैं,
जी ख़ुश हुआ है राह को पुर-ख़ार देख कर
चाहें ख़ाक में मिला भी दे किसी याद सा भुला भी दे,
महकेंगे हसरतों के नक़्श हो हो कर पाए माल भी
फिर देखिए अंदाज़-ए-गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार,
रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मिरे आगे
ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है
हुए तुम दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमाँ क्यूँ हो
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले।
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।।
galib ki dard bhari mohabbat wali shayari
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का।
उसी को देख कर जीते है जिस काफ़िर पे दम निकले।।
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ।
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ।।
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई।
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई।।
बेवजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब
जिसे खुद से बढ़कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था
बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है
ये ना थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता।
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता।।
ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे।
वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है।।
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते है।
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते है।।
मोहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले!
Bazicha-E-Atfal Hai Duniya Mere Aage
Hota Hai Shab-O-Roz Tamasha Mere Aage
Top 10 Romantic Shayari For Girlfriend
Aah Ko Chahiye Ik Umr Asar Hote Tak
Kaun Jeetaa Hai Teri Zulf Ke Sar Hote Tak
Hazaaron Ḳhvahishen Aisi Ki Har Ḳhvahish Pe Dam Nikle
Bahut Nikle Mire Arman Lekin Phir Bhī Kam Nikle
Ye Na Thi Hamari Qismat Ki Visal-E-Yaar Hota
Agar Aur Jiite Rahte Yahī Intizar Hota
Qaid-E-Hayat O Band-E-Gham Asl Men Donon Ek Hain
Maut Se Pahle Aadmi Ġham Se Najat Paa.E Kyun