जावेद अख़्तर की काव्यरचनाओं में बहुत ही गहरा और प्रभावशाली भाव प्रवाह है। जावेद अख़्तर एक मशहूर भारतीय लेखक, गीतकार और निर्माता हैं जिनकी काव्यरचनाओं में व्यक्ति की भावनाओं को सही रंग दिया गया है। जावेद जी की शायरी का एक ख़ास पहलू यह है कि वह सामाजिक मुद्दों को छूने और जनता की आवाज को बढ़ावा देने के लिए अपनी कला का उपयोग करते हैं।
जब जब दर्द का बादल छाया,
जब गम का साया लहराया
जब आँसू पलकों तक आया,
जब ये तनहा दिल घबराया
हमने दिल को ये समझाया,
दिल आखिर तू क्यों रोता है..
दुनिया में युही होता है..
ये जो गहरे सन्नाटे हैं..
वक्त ने सब को ही बांटे हैं
थोडा गम है सबका किस्सा..
थोड़ी धुप है सब का हिस्सा
आँख तेरी बेकार ही नम है,
हर पल एक नया मौसम है
क्यूँ तू ऐसे पल खोता है..
दिल आखिर तू क्यूँ रोता है..
पिघले नीलम सा बहता हुआ ये समां
नीली नीली सी खामोशियाँ
न कहीं है ज़मीन, न कहीं आसमान
सरसराती हुई टहनियाँ, पत्तियां
कह रहीं हैं की बस एक तुम हो यहाँ..
सिर्फ मैं हूँ..मेरी साँसें हैं..मेरी धड़कने
ऐसी गहराइयाँ, ऐसी तन्हाइयां,
और मैं… सिर्फ मैं..
अपने होने पे मुझको यकीन आ गया..
एक बात होटों तक है जो आई नहीं
बस आँखों से है झांकती
तुमसे कभी मुझसे कभी
कुछ लब्ज है वो मांगती
जिनको पहन के होटों तक आ जाए वो
आवाज़ की बाहों में बाहें डाल के इठलाये वो
लेकिन जो ये एक बात है एहसास ही एहसास है
खुशबु सी जैसे हवा में है तैरती
खुशबु जो बेआवाज़ है
जिसका पता तुमको भी है, जिसकी खबर मुझको भी है
दुनिया से भी छुपता नहीं, ये जाने कैसा राज है ।
javed akhtar shayari in hindi
दिलो में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो तो जिंदा हो तुम..
नज़र में ख्वाबों की बिजलियाँ लेके चल रहे हो तो जिंदा हो तुम..
हवा के झोकों के जैसे आज़ाद रहना सीखो
तुम एक दरिया के जैसे लहरों में बहना सीखो..
हर एक लम्हें से तुम मिलो खोले अपनी बाहें
हर एक पल एक नया समां देखे ये निगाहें..
जो अपनी आखों में हैरानियाँ लेके चल रहे हो तो जिंदा हो तुम..
दिलो में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो तो जिंदा हो तुम..
जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता!
मुझे पामाल रास्तों का सफर अच्छा नहीं लगता !!
अगर पलक पे है मोती तो ये नहीं काफ़ी
हुनर भी चाहिए अल्फ़ाज़ में पिरोने का
जो फ़स्ल ख़्वाब की तैयार है तो ये जानो
कि वक़्त आ गया फिर दर्द कोई बोने का
“इन चराग़ों में तेल ही कम था
क्यूं गिला फिर हमें हवा से रहे”
“हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे”
आज फिर दिल ने एक तमन्ना की,
आज फिर दिल को हमने समझाया….
ये ज़िन्दगी भी अजब कारोबार है कि मुझे
ख़ुशी है पाने की कोई न रंज खोने का
डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से,
लेकिन एक सफर पर ऐ दिल अब जाना होगा !
javed akhtar shayari on love
है पाश-पाश मगर फिर भी मुस्कुराता है
वो चेहरा जैसे हो टूटे हुए खिलौने का
एहसान करो तो दुआओं में मेरी मौत मांगना,
अब जी भर गया है जिंदगी से !
एक छोटे से सवाल पर इतनी ख़ामोशी क्यों…
बस इतना ही तो पूछा था-
‘कभी वफा की किसी से’ …
सब का ख़ुशी से फ़ासला एक क़दम है
हर घर में बस एक ही कमरा कम है
“कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी”
Javed Akhtar Shayari Collection
“डर हम को भी लगता है रास्ते के सन्नाटे से
लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा”
“ऊंची इमारतों से मकां मेरा घिर गया
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए”
वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है
ज़मीन सूरज की उँगलियों से फिसल रही है
जो मुझको ज़िंदा जला रहे हैं वो बेख़बर हैं
कि मेरी ज़ंजीर धीरे-धीरे पिघल रही है
ग़लत बातों को खामोशी से सुन्ना हामी भर लेना ,
बहुत है फायदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता !
javed akhtar shayari on love in hindi
दर्द के फूल भी खिलते है
बिखर जाते है जख्म कैसे भी हो
कुछ रोज़ में भर जाते है .
बंध गई थी दिल में कुछ उम्मीद सी
ख़ैर तुम ने जो किया अच्छा किया
मैं क़त्ल तो हो गया तुम्हारी गली में लेकिन
मिरे लहू से तुम्हारी दीवार गल रही है.
इस शहर में जी ने के अंदाज निराले है ,
होंठो पे लतीफे है आवाज़ में चाले है !
न जलने पाते थे जिसके चूल्हे भी हर सवेरे
सुना है कल रात से वो बस्ती भी जल रही है.
अजीब आदमी था वो
मोहब्बतों का गीत था !
वो मुफ़लिसों से कहता था ,
की दिन बदल भी सकते हैं !
तुम अपने कस्बों में जाके देखो वहां भी अब शहर ही बसे हैं
कि ढूंढते हो जो जिंदगी तुम वो जिंदगी अब कहीं नहीं है
अपनी वजहें-बर्बादी सुनिये तो मजे की
है जिंदगी से यूं खेले जैसे दूसरे की है
“इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं
होंटों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं”
“इक मोहब्बत की ये तस्वीर है दो रंगों में
शौक़ सब मेरा है और सारी हया उस की है”
“है पाश पाश मगर फिर भी मुस्कुराता है
वो चेहरा जैसे हो टूटे हुए खिलौने का”
जब आईना तो देखो इक अजनबी देखो
कहां पे लाई है तुमको ये ज़िंदगी देखो
Javed Akhtar Poetry in Hindi
कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी
मैं जानता हूँ की ख़ामशी में ही मस्लहत है
मगर यही मस्लहत मिरे दिल को खल रही है
कभी तो इंसान ज़िंदगी की करेगा इज़्ज़त
ये एक उम्मीद आज भी दिल में पल रही है
मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है
मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ
कि तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो कोई ख़्वाब नहीं
यहाँ तो दिल का ये आलम है क्या कहूँकमबख़्त !
भुला न पाया ये वो सिलसिला जो था ही नहीं वो इक ख़याल
जो आवाज़ तक गया ही नहीं वो एक बात जो मैं कह नहीं
सका तुमसे वो एक रब्त जो हममें कभी रहा ही नहीं
मुझे है याद वो सब जो कभी हुआ ही नहीं
मुझको यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं
एक ये दिन जब अपनों ने भी हमसे नाता तोड़ लिया
एक वो दिन जब पेड़ की शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं
जावेद अख्तर शायरी इन हिंदी
इस शहर में जीने के अंदाज निराले हैं
होठों पे लतीफे हैं और आवाज में छाले हैं
जो मुंतजिर न मिला वो तो हम हैं
शर्मिंदा कि हमने देर लगा दी पलट के आने में
पहले भी कुछ लोगों ने जौ बो कर गेहूँ चाहा था
हम भी इस उम्मीद में हैं लेकिन कब ऐसा होता है .
गिन गिन के सिक्के हाथ मेरा खुरदरा
हुआ जाती रही वो लम्स की नर्मी, बुरा हुआ
“तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूं फिर भी शायद
निकल आए कोई पहचान ज़रा देख तो लो
“उस की आंखों में भी काजल फैल रहा है
मैं भी मुड़ के जाते जाते देख रहा हूं”
जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया
उम्र भर दोहराएंगे ऐसी कहानी दे गया
उस से मैं कुछ पा सकू ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी शायद बराए मेहरबानी दे गया
खैर मैं प्यासा रहा पर उसने इतना तो किया
मेरी पलकों की कितरों को वो पानी दे गया
एक ये दिन जब सारी सड़कें रूठी-रूठी लगती हैं
एक वो दिन जब ‘आओ खेलें’ सारी गलियाँ कहती थीं
एक ये दिन जब जागी रातें दीवारों को तकती हैं
एक वो दिन जब शामों की भी पलकें बोझल रहती थीं
आप भी आइए हमको भी बुलाते रहिए
दोस्ती ज़ुर्म नहीं दोस्त बनाते रहिए।
ज़हर पी जाइए और बाँटिए अमृत सबको
ज़ख्म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।
वक्त ने लूट लीं लोगों की तमन्नाएँ भी,
ख़्वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।
शक्ल तो आपके भी ज़हन में होगी कोई,
कभी बन जाएगी तसवीर बनाते रहिए।
क्यूँ ज़िन्दगी की राह में मजबूर हो गए
इतने हुए करीब कि हम दूर हो गए
ऐसा नहीं कि हमको कोई भी खुशी नहीं
लेकिन ये ज़िन्दगी तो कोई ज़िन्दगी नहीं
क्यों इसके फ़ैसले हमें मंज़ूर हो गए
पाया तुम्हें तो हमको लगा तुमको खो दिया
हम दिल पे रोए और ये दिल हम पे रो दिया
पलकों से ख़्वाब क्यों गिरे क्यों चूर हो गए
खो गयी है मंजिले, मिट गए है सारे रस्ते,
सिर्फ गर्दिशे ही गर्दिशे, अब है मेरे वास्ते..
काश उसे चाहने का अरमान न होता,
मैं होश में रहते हुए अनजान न होता
दर्द अपनाता है पराए कौन
कौन सुनता है और सुनाए कौन
कौन दोहराए वो पुरानी बात
ग़म अभी सोया है जगाए कौन
वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं
कौन दुख झेले आज़माए कौन
javed akhtar shayari rekhta
एक ये दिन जब ज़हन में सारी अय्यारी की बातें हैं
एक वो दिन जब दिल में भोली-भाली बातें रहती थीं
एक ये दिन जब लाखों ग़म और काल पड़ा है आँसू का
एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थीं
क्यों डरें ज़िन्दगी में क्या होगा
कुछ ना होगा तो तज़रूबा होगा
हँसती आँखों में झाँक कर देखो
कोई आँसू कहीं छुपा होगा
इन दिनों ना-उम्मीद सा हूँ मैं
शायद उसने भी ये सुना होगा
देखकर तुमको सोचता हूँ मैं
क्या किसी ने तुम्हें छुआ होगा
जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया
उम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गया
उससे मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया
सब हवायें ले गया मेरे समंदर की कोई
और मुझ को एक कश्ती बादबानी दे गया
ख़ैर मैं प्यासा रहा पर उस ने इतना तो किया
मेरी पलकों की कतारों को वो पानी दे गया
तमन्ना फिर मचल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
यह मौसम ही बदल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
मुझे गम है कि मैने जिन्दगी में कुछ नहीं पाया
ये ग़म दिल से निकल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे
ज़माना मुझसे जल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
ये दुनिया भर के झगड़े, घर के किस्से, काम की बातें
बला हर एक टल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
कोई शिकवा न ग़म न कोई याद
बैठे बैठे बस आँख भर आई
किन लफ़्ज़ों में इतनी कड़वी, इतनी कसैली बात लिखूं
शेर की मैं तहज़ीब निभाऊं या अपने हालात लिखूं
मुझ को यकीं है सच कहती थी जो भी अम्मी कहती थी,
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थी.
हर ख़ुशी में कोई कमी-सी है
हँसती आँखों में भी नमी-सी है
दिन भी चुप चाप सर झुकाये था
रात की नब्ज़ भी थमी-सी है
किसको समझायें किसकी बात नहीं
ज़हन और दिल में फिर ठनी-सी है
ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई
गर्द इन पलकों पे जमी-सी है
कह गए हम ये किससे दिल की बात
शहर में एक सनसनी-सी है
हसरतें राख हो गईं लेकिन
आग अब भी कहीं दबी-सी है
अगर दुसरो के जोर पर उड़कर दिखाओगे
तो अपने पैरो से उड़ने की हुनर भूल जाओगे
आज मैंने अपना फिर सौदा किया
और फिर मैं दूर से देखा किया
ज़िन्दगी भर मेरे काम आए असूल
एक एक करके मैं उन्हें बेचा किया
कुछ कमी अपनी वफ़ाओं में भी थी
तुम से क्या कहते कि तुमने क्या किया
हो गई थी दिल को कुछ उम्मीद सी
खैर तुमने जो किया अच्छा किया
एक ये घर जिस घर में मेरा साज़-ओ-सामाँ रहता है
एक वो घर जिस घर में मेरी बूढ़ी नानी रहती थीं
ख़ून से सींची है मैं ने जो ज़मीं मर मर के
वो ज़मीं एक सितम-गर ने कहा उस की है
सँवरना ही है तो किसी की नजरों में संवरिये,
आईने में खुद का मिजाज नहीं पूछा करते
आप भी आए, हम को भी बुलाते रहिए
दोस्ती ज़ुर्म नहीं, दोस्त बनाते रहिए
“मैं भूल जाऊं अब यही मुनासिब है,मगर भुलाना भी चाहूं तोह किस तरह भुलाऊँ,
की तुम तोह फिर भी हकीकत हो, कोई ख्वाब नहीं.”
जो भी मैंने काम किया है वो मेने दिल के करीब से ही किया है।
जो काम मेरे दिल के करीब नहीं था, उसको मैंने कभी किया ही नहीं
हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे
यही हालात इब्तदा से रहे लोग हमसे ख़फ़ा-ख़फ़ा-से रहे
बेवफ़ा तुम कभी न थे लेकिन ये भी सच है कि बेवफ़ा-से रहे
इन चिराग़ों में तेल ही कम था क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे
बहस, शतरंज, शेर, मौसीक़ी तुम नहीं रहे तो ये दिलासे रहे
उसके बंदों को देखकर कहिये हमको उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे
ज़िन्दगी की शराब माँगते हो हमको देखो कि पी के प्यासे रहे
थीं सजी हसरतें दूकानों पर
ज़िन्दगी के अजीब मेले थे
बहुत आसान है पहचान इसकी
अगर दुखता नहीं तो दिल नहीं है
इक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के
इक तरफ़ आँसुओं के रेले थे
सँवरना ही है तो किसी की नजरों में संवरिये,
आईने में खुद का मिजाज नहीं पूछा करते
ख़ुदकुशी क्या दुःखों का हल बनती
मौत के अपने सौ झमेले थे
ज़रा सी बात जो फैली तो दास्तान बनी
वो बात ख़त्म हुई दास्तान बाक़ी है
जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया
उम्र भर दोहराएंगे ऐसी कहानी दे गया
ज़हनो-दिल आज भूखे मरते हैं
उन दिनों हमने फ़ाक़े झेले थे
जब आईना तो देखो इक अजनबी देखो
कहां पे लाई है तुमको ये ज़िंदगी देखो
ज़हन की शाख़ों पर अशआर आ जाते हैं
जब तेरी यादों का मौसम होता है,
हमको तो बस तलाश नए रास्तों की है…
हम हैं मुसाफ़िर ऐसे जो मंज़िल से आए हैं…
बंध गई थी दिल में कुछ उम्मीद सी
ख़ैर तुम ने जो किया अच्छा किया
हर खुशी में कोई कमी-सी है
हंसती आंखों में भी नमी-सी है
सब की ख़ातिर हैं यहाँ सब अजनबी
और कहने को हैं घर आबाद सब
उस से मैं कुछ पा सकू ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी शायद बराए मेहरबानी दे गया
भूलके सब रंजिशें सब एक हैं
मैं बताऊँ सबको होगा याद सब.
छोड़ कर जिस को गए थे आप कोई और था
अब मैं कोई और हूँ वापस तो आ कर देखिए.
चाँद यादों के दिये थोड़ी तमन्ना कुछ ख्वाब ,
ज़िन्दगी तुझ से ज़्यादा नहीं माँगा हम नैय…
सब को दावा-ए-वफ़ा सबको यक़ीं
इस अदकारी में हैं उस्ताद सब
दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग
जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग
शहर के हाकिम का ये फ़रमान है
क़ैद में कहलायेंगे आज़ाद सब
चार लफ़्ज़ों में कहो जो भी कहो
उसको कब फ़ुरसत सुने फ़रियाद सब